Atul Kumar Rai

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बसंत किलकंत है... ( ग्राम्य डायरी ) - Atul Kumar Rai

Updated 5 Years Ago

बसंत किलकंत है... ( ग्राम्य डायरी ) - Atul Kumar Rai
सरसो पियरा चुका है…हवा जब-जब बहती है,तब-तब मटर के फूल,गुलाब के महंगे फूल को मात देते हैं। चना पर ओस की बूंदों को देखकर,मन मुदित हुआ जाता है। धूप होते ही नवम्बर से लेकर जनवरी तक तंग रजाई की तरह सिकुड़ा गाँव किसी बत्तीस चोंप वाले तम्बू की तरह फैल जाता है। खेत की तरफ …
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