फिर तुमसे आस !
दुनिया भी वही और तुम भी वही,फिर तुम से आस लगाओ तो क्या| उबैदुल्लाह अलीम...
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अब तुम भी हमें!
तुम आस बंधाने वाले थे,अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या| उबैदुल्लाह अलीम...
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इक आइना था!
इक आइना था सो टूट गया,अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या| उबैदुल्लाह अलीम...
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आज शाम है बहुत उदास!
आज मैं हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि स्वर्गीय भगवतीचरण वर्मा जी की एक क...
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तुम बाद-ए-सबा!
जब हम ही न महके फिर साहब,तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या| उबैदुल्लाह अलीम...
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कोई रंग तो दो!
कोई रंग तो दो मिरे चेहरे को, फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या| उबैदुल्लाह अलीम...
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