बड़ा बेदम निकलता है...
हँसी होंठों पे रख, हर रोज़ कोई ग़म निगलता है... मगर जब लफ्ज़ निकले तो ज़रा सा न...
11 Years Ago
भूख बढ़ती ही रही और ज़िंदगी नाटी रही...
झूठी आज़ादी की बस, इतनी ही परिपाटी रही... भूख बढ़ती ही रही और ज़िंदगी नाटी रही....
11 Years Ago
ख्वाब में चावल के कुछ दाने दिखे...
मिन्नतें रोटी की वो करता रहा... मैं भी मून्दे आँख बस चलता रहा... आस में बादल की, ...
11 Years Ago
महफ़िलों में एक जलती नज़्म गा लेते हैं हम...
बढ़ रही सर्दी में इक बस्ती जला लेते हैं हम... प्यास जो बढ़ने लगी, खूं से बुझा ल...
11 Years Ago
चंद्रशेखर आज़ाद को जलते हुए सुमन..
अब खून में आतिश का आगाज़ ज़रूरी है... ज़हनी गुलामों होना आज़ाद ज़रूरी है... हो ...
11 Years Ago
पेट और सीने की लौ, लय में पिरोकर देखिए...
दूसरों के ग़म से भी आँखें भिगोकर देखिए ... तन को , चुप फुटपाथ के कंकर चुभ...
11 Years Ago