महिला दिवस - विशेष
मैंने माँ से पहचाना एक स्त्री होना कितना दुसाध्य है कोई देवता हो जाने से पहच...
3 Years Ago
कविता : ऊँचे कद के लोग
हमारे, समय से बहुत पहले जब जानवर पूजे जा रहे थे तभी से यह सीखा था कि ऊँची कुर्स...
4 Years Ago
औरतें
मेरी औरतें अब भी अपनी पहचान के लिए कुछ नही करती न छपी होंती हैं कहीं न बहस कर र...
4 Years Ago
कविता : खेल
शहर के बीच मैदान जहाँ खेलते थे बच्चे और उनके धर्म घरों में खूँटी पर टँगे र...
4 Years Ago
कविता : अमराई में बारूद
हाँ, मैं भूल गया हूँ मुस्कुराना/ अपने से बातें करना/ कहकहे लगाना/ या तुम्हार...
5 Years Ago
कविता : बेमानी सन्दर्भ
मेरे लिए फिर नही लौटा बयारो वाला मौसम लाख चाहने पर भी मिट्टी से नही उठी सौं...
6 Years Ago