निःस्वार्थ भावना
रामसिंह एक शिक्षक था। शिक्षण के साथ साथ उसे पौधे लगाने का बहुत शौक था।जहाँ भी उसे कोई खाली जगह दिखाई देती ,कोई न कोई पौधा रोप देता था .पाठशाला को उसने हरा भरा बना दिया था।
एक दिन एक बच्चे ने शिक्षक से पूछा-गुरु जी आप इतनी रुचि लेकर पौधे लगाते हैं। इसके बदले आपको क्या मिलेगा।आप किसी दूसरी जगह बदली होकर चले जाएंगे। आप न तो इनकी छाया में बैठ पाएंगे और न इनके फल खा पाएंगे।
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