कहां हो तुम?
मैं कुछ कहने जा रहा हूं,
कहां हो तुम?
यही मेरे ईर्द-गिर्द हो,
या फिर कहीं और हो तुम।
सच है मैनें अभी तक,
कुछ कहा नही तुमसे।
यूहीं जुबां पर शिकायतो के ताले लग जाते है।
कुछ तुम्हारी और,
कुछ मेरे शब्दों के जुबां पर।
यह तो सच है सच तुम्हें भी मालूम है,
झूठ तो रिश्ते सींचते है।
सच उन्हें बढ़ने नही देते।
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