वेद प्रकाश को पढ़ने वालों का एक अलग वर्ग था जो कि उनकी विजय-विकास सीरीज़ का दीवाना था. लेकिन शर्मा जी तो कुछ हटकर करने में विश्वास रखते थे. उन्होने एक नये प्रयोग के तहत देवकीनन्दन खत्री रचित ‘चंद्रकांता’ और ‘चंद्रकांता संतति’ की तर्ज पर 14 भागों में ‘देवकांता संतति’ की रचना की.
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