हम पुरनिया !!
धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का ढीला-ढाला वस्त्र देह का ; मद्धिम होती तपिश प्रेम...
11 Years Ago
हम पुरनिया !!
धवल-स्फटिक श्रृंगार केश का ढीला-ढाला वस्त्र देह का ; मद्धिम होती तपिश प्रेम...
11 Years Ago
चौबीस घन्टे
कितने दिनों बाद बिना किसी डायरी के बिना शायरी के बिताया ज़िंदगी का एक द...
11 Years Ago
चौबीस घन्टे
कितने दिनों बाद बिना किसी डायरी के बिना शायरी के बिताया ज़िंदगी का एक द...
11 Years Ago
उत्सव
लो फिर आ गया मौसम त्यौहारों का व्यवहारों का लौटा फिर वृक्षों पर नये पात औ...
12 Years Ago
उत्सव
लो फिर आ गया मौसम त्यौहारों का व्यवहारों का लौटा फिर वृक्षों पर नये पात औ...
12 Years Ago