बच्चे की नींद
गहराती रात में, टिमटिमाती दो आँखें, एक में सपने, एक भूख, अंतर्द्वंद दोनों ...
10 Years Ago
रेल की पटरियां
रेल की दो पटरियां, अनवरत चलती हुई, जीवन की जटिलताओं से दूर, मानो ज़िद हो गंतव्...
10 Years Ago
हार न अब तू मान लेना
राह में पाषाण युग है, श्वान भूँकते अनवरत हैं, परिस्थितियों की वक्र रेखा, सर...
10 Years Ago
१५ अगस्त
१५ अगस्त का दिन था। मैं गांधी मैदान पर आयोजित स्वतंत्रता दिवस सम...
11 Years Ago
जीवन का पहिया
एक कागज़ के, ज़मीन पर बिखरे कुछ टुकड़े, टुकुर-टुकुर ताकते हैं, उस घूमते पंखे ...
11 Years Ago
पैरों के निशान
मैं हिमालय की उस घाटी में, जो दुर्गम, गहन, गंभीर थी, उतरता चला गया, विचारों क...
11 Years Ago