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Laxmi N. Gupta's Kavyakala

Primarily my poems and prose pieces

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  • Updated 4 Months Ago

अशोक की चिन्ता

Updated 6 Years Ago

जलता है यह जीवन पतंग जीवन कितना? अति लघु क्षण, ये शलभ पुंज-से कण-कण, तृष्णा वह अनलशिखा बन दिखलाती रक्तिम यौवन। जलने की क्यों न उठे ...
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