देश की भूमि देने से पहले
संविधान संशोधन आवश्यक
n डा.कृष्ण गोपाल
मूल लेख पांचजन्य से साभार: लिंक मूल लेख
स्रोत: Panchjanya - Weekly तारीख: 11/26/2011 12:29:13 PM
गतांक से आगे
निर्णय आज भी प्रभावी
सर्वोच्च न्यायालय (ए.आई.आर.1960) के निर्देश आज भी प्रभावी हैं। यह निर्णय भारतीय राजनीति के इतिहास के लिए आज भी एक मील का पत्थर बना हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने बहुमत वाली सरकारों को भी निरंकुश होकर अपनी मर्यादाओं और अधिकारों का उल्लंघन न करने को बाध्य किया है। भारत की भूमि को किसी दूसरे देश को देने का प्रश्न सरकार और कुछ नौकरशाहों की इच्छा पर ही निर्भर न रहकर संविधान संशोधन के बाद ही संभव हो सकेगा। कोई भी ऐसा समझौता, जिसमें भारत संघ की पूर्व निर्धारित भूमि यदि कम होती है और भारत संघ का क्षेत्रफल कम होता है तो उस सरकार को संविधान की धारा 368 (संविधान संशोधन) की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य होगा। संविधान में आवश्यक संशोधन के बाद ही भारत की भूमि किसी अन्य देश को दी जा सकती है। बाद के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय के अन्य निर्णयों ने भी सर्वोच्च न्यायालय (1960) के निर्देशों को और अधिक स्पष्ट और दृढ़ कर दिया है। बेरूबाड़ी मामले में ही एक बार फिर से (ए.आई.आर. 1966, सर्वो. न्यायालय 644) तथा कच्छ के रन में सीमा विवाद पर (ए.आई.आर. 1969, सर्वो. न्यायालय-783) निर्णयों ने यह स्पष्ट किया है कि जब कभी भारत की भूमि को किसी अन्य देश को देने का विषय उपस्थित होगा तब उसके लिए संविधान में संशोधन आवश्यक होगा।
क्रमश:
इन्दिरा-मुजीब समझौता, मनमोहन-शेख हसीना समझौता, संविधान संशोधन,
Read More