पाषाढ़ पुरूष, Pashad Purush, Neeraj Dwivedi, नीरज द्विवेदी, Life is just a Life, Woman, Shades of Life, man,
मैं पुरूष
पाषाढ़ कह कर, मुझको ठुकराओ न तुम
आसमां का रंग गुलाबी
यदि तुम्हारे होंठ से है
घुमड़कर घन घन बरसना
पत्थरों की चोट से है
तुम्हारी साँसों से समंदर में कहीं लहरें उठी हैं
अब मुझे
आषाढ़ कह कर मुझसे घबराओ न तुम
मैं पुरूष
पाषाढ़ कह कर मुझको ठुकराओ न तुम
जोड़कर अपने तुम्हारे
स्वप्न कुछ पाले हैं भीतर
साकार करने में गयी है, उम्र
अब छाले हैं भीतर
रौशनी हो तुम तुम्ही से दिन युगों से जग रहे हैं
फिर हमें
रातें समझ कर क्रम को झूंठलाओ न तुम
मैं पुरूष
पाषाढ़ कह कर मुझको ठुकराओ न तुम
मैं रहा हूँ मलिन पोखर
तुम हो गंगाजल सी पावन
मैं ठिठुरता शीत हूँ पर
तुम तो ऋतुओं के हो सावन
तुम सदा हो जिंदगी जल सी सरस मधुरिम सरल हो
तो मुझे
बस पात्र कह कर खुद को बिखराओ न तुम
मैं पुरूष
पाषाढ़ कह कर मुझको ठुकराओ न तुम ................................. नीरज द्विवेदी
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