वो सैनिक है आसमान सी छाती लेकर फिरता है,
धरती के हक़ में सुभाष की थाती लेकर फिरता है।
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, जिद्दी स्वांसों की हलचल है,
जमा हुआ है रक्त, धौंकनी चलती है, कैसा ये बल है,
अग्निपरीक्षा पल पल देता, सीने में भरकर हुँकार,
खौल उठता है शोणित सुनकर, धरती की एक करुण पुकार,
आसमान भी जिसके आगे, नतमस्तक सा रहता है,
उस एक हिमालय की चोटी से, ऊँचा मस्तक रहता है,
पुत्र नहीं वो भ्रात नहीं वो, पति तो छोडो तात नहीं वो,
अपनी दुनिया छोड़ स्वयं को, पहले सैनिक कहता है,
वो सैनिक है आसमान सी छाती लेकर फिरता है,
धरती के हक़ में सुभाष की थाती लेकर फिरता है।
--- नीरज द्विवेदी
Wo sainik hai aasman si
chhati lekar firta hai,
Dharti ke haq mein subhash ki
thati lekar firta hai.
Himgiri ke uttung shikhar par,
jiddi svanson ki halchal hai,
Jama huya hai rakt dhaunkni,
chalti hai kaisa ye bal hai,
Agnipareeksha pal pal deta,
seene mein bharkar hunkaar,
Khul uthata hai shonit sunkar,
dharti ki ik karun pukar,
Aasman bhi jiske aage,
natmastak sa rahta hai,
Us ek himalay ki choti se,
unncha mastak rahta hai,
Putra nahin wo, bhrat nahin wo,
pati to chhodo taat nahin wo,
Apni duniya chhod svyam ko
pahle sainik kahta hai,
--- Neeraj Dwivedi
वो सैनिक है आसमान सी छाती लेकर फिरता है,
धरती के हक़ में सुभाष की थाती लेकर फिरता है।
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