नवगीत, तू दंड दे मेरी खता है, Environment, Nature, Tree, Neeraj Dwivedi, hindi poem, poem, Kavita, Creativity, Life is just a Life, नवगीत - तू दंड दे मेरी खता है
ऐ मनुज तू
काट मुझको
दंड दे मेरी खता है,
खोदकर अपनी
जडें ही
मृत्यु से क्यों तोलता है?
धार दे चाकू छुरी में, और पैनी कर कुल्हाड़ी,
घोंप दे मेरे हृदय में, होश खो पी खूब ताड़ी,
जान ले मेरी
हिचक मत
बेवजह क्यों डोलता है?
रुक गया क्यों, साँस लेने की जरूरत ही तुझे क्या,
मौत से मेरी मरेगा कौन, क्यों, कैसे मुझे क्या,
सोच, तू अपनी
रगों में
ही जहर क्यों घोलता है?
नष्ट कर सारे वनों को, खेत तू सारे जला दे,
सूख जब जाए तलैया, ईंट पत्थर से सजा दे,
छेद कर आकाश
तू अपनी
छतें क्यों खोलता है?
है जमीं तेरी बपौती, और पानी भी हवा भी,
छीन ले मातृत्व इसका, और विष दे कर दवा भी,
बाँझ कर फिर
इस धरा को
मातु ही क्यों बोलता है?
--- नीरज द्विवेदी
नवगीत - तू दंड दे मेरी खता है Tu dand de Meri khata hai
Read More