पिछले दो दशक में हिन्दी परिदृश्य में कथा साहित्य के मुकाबले गद्य की दूसरी विधाएं ज्यादा रूचि और आनंद के साथ पढ़ी जा रही हैं। किसी वक्त इंडिया टुडे, जनसत्ता के दीपावली, नववर्ष साहित्य विशाशंको की पूरे वर्ष चर्चा रहती थी और तैयारी भी इतनी लंबी। अब सब भूल चुके हैं .इसकी जगह ली है …
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