Roushan Kumar

Roushan Kumar's Roushan's Poetry Page

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  • Updated 10 Years Ago

ढल रही है रात………….

Updated 14 Years Ago

ढल रही है रात  धीरे-धीरे , सपने रहे है उड़ मेरे आस पास जैसे हो मेरे भावनाओं की परछाईया रात और दिल के बीच है मेरे अपने भ्रम की दीवार पता है इससे के ढल रही है रात फिर भी दिल कहता है रुक जाये रात की ये…
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