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Acarya Sanjiv Salil's DIVYA NARMADA

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  • Updated 1 Year Ago

नवगीत: संजीव * पूज रहे हैं खोखले आधार * संसद में बातें ही बातें हैं उठ-पटक, छीन-झपट मातें हैं अपने ही अपनों को छलते हैं- अपने-सपने करते घातें हैं अवमूल्यन का गरम बाज़ार पूज रहे हैं खोखले आधार * तिमिराये दिन, गुमसुम रातें हैं सबब फूट का बनती जातें हैं न्यायालय दुराचार का कैदी- सर पर चढ़, बैठ रही लातें हैं मनमानी की बनी मीनार पूज रहे हैं खोखले आधार * असमय ही शुभ अवसर आते हैं अक्सर बिन आये ही जाते हैं पक्षपात होना ही होना है- बारिश में डूब गये छाते हैं डोक्टर ही हो रहे बीमार पूज रहे हैं खोखले आधार * 27-5-2015

Updated 5 Years Ago