इस अंक के संपादकीय में डॉ. अजय जोशी बताते हैं कि इस अंक हेतु उन्होने 57 लघुकथाओं का चयन किया है, हालांकि वे चाहते थे कि इससे अधिक लघुकथाएं भी स्थान पा सकें, लेकिन पृष्ठों की सीमित संख्या के कारण वे कुछ अन्य लघुकथाओं को स्थान नहीं दे पाये। अतिथि संपादकीय में डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा लघुकथा को परिभाषित करते हुए अपने विचार रखते हैं कि लघुकथा आंतरिक सत्य की सूक्ष्म और तीक्ष्ण अभिव्यक्ति है जो पाठक की चेतना को झकझोरती है तथा यह आज के व्यस्त जीवन में पाठक को कम समय में अधिक प्रदान करने की क्षमता रखती है।
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