कभी कभी छत की ऊपरी मंजिल पर जाता हूँ, नितांत रात में निहारने आकाश को, इस भागदौड़ में भूल जाता हूँ प्रकृति के इस अजूबे को बचपन से जो नहीं बदला अब तक मैं ढूंढ लेता हूँ डमरू जैसे ओरियन को । जब मास्टर जी ने बताया था तुम्हारे बारे में, बचपन में उस दिन…
Read More