Tikuli

Tikuli's Spinning A Yarn Of Life

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एक शहर ये भी - कविता 8 - दरगाह हज़रत निजामुद्दीन

Updated 5 Years Ago

एक शहर ये भी - कविता 8 - दरगाह हज़रत निजामुद्दीन
एक ख़ुशनुमा सुबह ख़ींच लायी मुझे निज़ाम्मुद्दीन बस्ती की तंग गलियों में मन जा रुक गया महबूब – ए – इलाही की महकती चौखट पे और ग़म सब घुल गए खुसरो की मोहब्बत के मदवे में, इत्र और गुलाब से महकत…
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