Veerendra Shivhare

Veerendra Shivhare's Veerkikalamse

तुझे अपना कहूं तो किस
हक से वीर, तेरी साँसों
ने छीन ली जिंदिगी मेरी

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  • Updated 6 Years Ago

तराशा हुआ पत्थर हूँ • वीरांश | वीर की कलम से

Updated 10 Years Ago

तराशा हुआ पत्थर हूँ • वीरांश | वीर की कलम से
तराशा हुआ पत्थर हूँ, अब बस टूटना बाकी है, पुर्जे तो मेरे कर चुके हो, अब बस लूटना बाकी है| हर शक्स ईमारत ए सब्र के आखिरी छोर पर है, उम्मीद हार चुका है, अब बस कूदना बाकी है| तराशा हुआ पत्थर हूँ, अब बस टूटना बाकी है… राह में नज़र चुरा कर चले जाते …
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