यहीं कहीं तो था.. अब नज़र नहीं आता, सिर्फ ठिकाने मिलते हैं, कभी घर नहीं आता । कैसे बताऊँ किस मुश्किल से आ पहुंचा हूँ! मुसाफिर के साथ चलकर सफ़र नहीं आता । दिल में ज़रूर सुराख़ हो गया है वगरना, क्यों पहले की तरह अब भर नहीं आता | दर्द की दीवारें, फर्श, दरवाज़े …
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