दरिया दिया और प्यासे रहे, उम्र भर साथ अपने दिलासे रहे। जो थे वैसा रहने न दिया, न सोना बने, न कांसे रहे। कब टिकती है अपने कहे पर, ज़ुबां ए जीस्त पर झांसे रहे। मुद्दतों कायम रहा अपना डेरा, हम जहाँ भी रहे, अच्छे खासे रहे। मुझमें क्या कुछ न बदला ‘वीर’, मगर ग़ैरों …
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