श्रीकृष्ण भारत भूमि की जीवन साधना के प्रतिमान के रूप में हमारे सामने रहते हैं। हम कैसे हर्ष-विषाद दोनों को एक तरह ग्रहण कर सकें, हम कैसे प्यार और निमर्मता दोनों का निर्वाह कर सकें, हम कैसे वीरता और धीरता दोनों को साधे रह सकें, हम कैसे छोटे से छोटे काम में दक्षता प्राप्त करके वह काम करने में गौरव का अनुभव करें, यह सब हम श्रीकृष्ण को सामने देखते हैं तो आसान लगता है, श्रीकृष्ण को नहीं देखते, असंभव लगता है।
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