“मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति …” - मनुष्यों एवं पशुओं में अंतर पर भर्तृहरि के नीतिवचन
संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध ग्रंथ “शतकत्रयम्” के रचयिता भर्तृहरि के बार...
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“कलियुगे जना: अघासुरायन्ते” - श्रीमद्भागवत्पुराण के अनुसार कलियुग का मूल स्वरूप
श्रीमद्भागवत्पुराण १८ प्रमुख पुराणों में से एक है जिसमें भगवान् विष्णु एवं...
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“न विश्वसेत् अविश्वस्ते …” - पंचतंत्र में वर्णित कौवे एवं चूहे की नीतिकथा
पंचतंत्र के नीतिवचनों पर आधारित अपनी 7 फरवरी 2010 की पोस्ट में मैंने ग्रंथ का स...
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ईशवास्योपनिषद् का दर्शन - परमात्मा विविध प्राणियों के रूप में स्वयं को प्रकट करता है
ईशावास्योपनिषद् ग्यारह प्रमुख उपनिषदों में से एक है। यह बहुत ही छोटा ग्रं...
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छान्दोग्य उपनिषद् में परमात्मा की व्यापकता पर उद्दालक-श्वेतकेतु संवाद
वैदिक चिंतकों के अनुसार यह सृष्टि परब्रह्म या परमात्मा से उत्पन्न हुई है और ...
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“अर्थनाशं मनस्तापं … मतिमान्न न प्रकाशयेत्” आदि चाणक्यनीति वचन
“चाण्क्यनीतिदर्पण” एक छोटी पुस्तिका है जिसके सभी छंदों में नीतिवचन निहित ह...
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